‘केंद्र के पैसे से चलने वाली यूनिवर्सिटी में वंचितों-पिछड़ों को आरक्षण नहीं’, AMU पर सीएम योगी का बयान
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाए गए फैसले के बाद यूपी की सियासत भी गरमा गई है. शनिवार को सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ अलीगढ़ की खैर सीट पर चुनाव प्रचार करने पहुंचे हुए थे. जहां, मुख्यमंत्री अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया. सीएम ने कहा कि भारत की संसाधनों से बनने वाला, भारत की जनता के टैक्स से चलने वाला एक ऐसा संस्थान जो अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति के लोगों को कोई आरक्षण नहीं देता है, लेकिन मुसलमानों के लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था दी जाती है.
सीएम ने आगे कहा कि भारत का संविधान अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ी जाति के लोगों को आरक्षण की सुविधा देता है, लेकिन इस विश्वविद्यालय में इन लोगों को आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता है. क्यों नहीं दिया जाता है, विश्वविद्यालय में इस जाति के लोगों को भी यह सुविधा मिलना चाहिए. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी नहीं चाहती है, बीएसपी नहीं चाहती है क्योंकि इन सबको अपना वोट बैंक बचाना है. ये लोग वोट बैंक के चक्कर में राष्ट्रीय अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.
रैली में सीएम ने जम्मू-कश्मीर के विधानसभा में 370 को लेकर पास हुए प्रस्ताव पर कांग्रेस को नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार को घेरा. सीएम ने कहा कि विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया है कि जम्मू-कश्मीर में फिर से 370 की बहाली होगी. आपकी भावना के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं. कश्मीर को एक बार फिर से मजहबी उन्माद के कोढ़ में बदलने का कुत्सित प्रयास हो रहा है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से जुड़े 57 साल पुराने उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा पाने का हकदार नहीं है क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत हुई है. संविधान पीठ के इस फैसले के बाद अब तीन जजों की पीठ यह तय करेगी कि एएमयू अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से पारित फैसले में संविधान पीठ ने कहा है कि किसी कानून या एक कार्यकारी कार्रवाई जो शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना या प्रशासन में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करती है, वह संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के प्रावधानों के खिलाफ है. पीठ ने बहुमत के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ द्वारा 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत सरकार के मामले में पारित फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की है